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आम के पेड़

आम के फूल व फलन को मार्च में गिरने से ऐसे रोकें: आम के पेड़ के रोगों के उपचार

आम के फूल व फलन को मार्च में गिरने से ऐसे रोकें: आम के पेड़ के रोगों के उपचार

आम जिसे हम फलों का राजा कहते है,  इसके लजीज स्वाद और रस के हम सभी दीवाने है। गर्मियों के मौसम में आम का रस देखते ही मुंह में पानी आने लगता है। 

आम ना केवल अपने स्वाद के लिए सबका पसंदीदा होता है बल्कि यह हमारे  स्वास्थ्य के लिए भी काफी फायदेमंद होता है। आम के अंदर बहुत सारे विटामिन होते है जो हमारी त्वचा की चमक को बनाए रखती है। 

हां आपको मार्च में आम के फूल व फलन को गिरने से रोकने और आम के पेड़ के रोगों के उपचार की जानकारी दी जा रही है।

आम की उपज वाले राज्य और इसकी किस्में [Mango growing states in India and its varieties]

भारत में सबसे ज्यादा आम कन्याकुमारी में लगते है। आम के पेड़ो की अगर हम लंबाई की बात करे तो यह तकरीबन 40 फुट तक होती है। वर्ष 1498 मे केरल में पुर्तगाली लोग मसाला को अपने देश ले जाते थे वही से वे आम भी ले गए। 

भारत में लोकप्रिय आम की किस्में दशहरी , लगड़ा , चौसा, केसर बादमि, तोतापुरी, हीमसागर है। वही हापुस, अल्फांसो आम अपनी मिठास और स्वाद के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी काफी डिमांड में रहता है।

 

आम के उपयोग और फायदे [Uses and benefits of mango]

आम का आप जूस बना सकते है, आम का रस निकल सकते है और साथ ही साथ कच्चे आम जिसे हम कैरी बोलते है उसका अचार भी बना सकते है। 

आम ना केवल हमारे देश में प्रसिद्ध है बल्कि दुनिया के कई मशहूर देशों में भी इसकी मांग बहुत ज्यादा रहती है। आम कैंसर जैसे रोगों से बचने के लिए काफी ज्यादा फायदेमंद होता है। 

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आम के पौधों को लगाने के लिए सबसे पहले आप गड्ढों की तैयारी इस प्रकार करें [Mango Tree Planting Method]

आम के पेड़ों को लगाने के लिए भारत में सबसे अच्छा समय बारिश यानी कि बसंत रितु को माना गया है। भारत के कुछ ऐसे राज्य हैं जहां पर बहुत ज्यादा वर्षा होती हैं ऐसे में जब वर्षा कम हो उस समय आप आम के पेड़ों को लगाएं। 

क्योंकि शुरुआती दौर में आम के पौधों को ज्यादा पानी देने पर वो सड़ने लग जाते है। इसके कारण कई सारी बीमारियां लगने का डर भी रहता है। 

आम के पेड़ों को लगाने के लिए आप लगभग 70 सेंटीमीटर गहरा और चौड़ा गड्ढा खोल दें और उसके अंदर सड़ा हुआ गोबर और खाद डालकर मिट्टी को अच्छी तरह तैयार कर दीजिए। 

इसके बाद आप आम के बीजों को 1 महीने के बाद उस गड्ढे के अंदर बुवाई कर दीजिए। प्रतीक आम के पेड़ के बीच 10 से 15 मीटर की दूरी अवश्य होनी चाहिए अन्यथा बड़े होने पर पेड़ आपस में ना टकराए।

आम के पौधों की अच्छे से सिंचाई किस प्रकार करें [How to irrigate mango plants properly?]

आम के पेड़ों को बहुत लंबे समय तक काफी ज्यादा मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। एक बार जब आम के बीज गड्ढों में से अंकुरित होकर पौधे के रूप में विकसित होने लगे तब आप नियमित रूप से पौधों की सिंचाई जरूर करें। 

आम के पेड़ों की सिंचाई तीन चरणों में होती हैं। सबसे पहले चरण की सिंचाई फल लगने तक की जाती है और उसके बाद दूसरी सिंचाई में फलों की कांच की गोली के बराबर अवस्था में अच्छी रूप से की जाती हैं। 

 जब एक बार फल पूर्ण रूप से विकसित होकर पकने की अवस्था में आ जाते हैं तब तीसरे चरण की सिंचाई की जाती हैं। सबसे पहले चरण की सिंचाई में ज्यादा पानी की आवश्यकता होती हैं 

आम के पौधों को। सबसे अंतिम चरण यानी तीसरे चरण में आम के पेड़ों को इतनी ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती हैं। आम के पेड़ों की सिंचाई करने के लिए थाला विधि सबसे अच्छी मानी जाती हैं इसमें आप हर पेड़ के नीचे नाली भला कर एक साथ सभी पेड़ों को धीरे-धीरे पानी देवे। 

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आम के पौधों के लिए खाद और उर्वरक का इस्तेमाल इस प्रकार करें [How to use manure and fertilizer for mango plants?]

आम के पेड़ को पूर्ण रूप से विकसित होने के लिए बहुत ज्यादा मात्रा में नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटेशियम की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती हैं। 

ऐसे में आप प्रतिवर्ष आम के पौधों को इन सभी खाद और उर्वरकों की पूर्ण मात्रा में खुराक देवे। यदि आप आम के पौधों में जैविक खाद का इस्तेमाल करना चाहते है तो 40kg सड़ा हुआ गोबर का खाद जरूर देवे। 

इस प्रकार की खाद और सड़ा गोबर डालने से प्रतिवर्ष आम के फलों की पैदावार बढ़ जाती हैं।इसी के साथ साथ अन्य बीमारियां और कीड़े मकोड़ों से भी आम के पौधों का बचाव होता है।

आप नाइट्रोजन पोटाश और फास्फोरस को पौधों में डालने के लिए नालियों का ही इस्तेमाल करें। प्रतिमाह कम से कम तीन से चार बार आम के पौधों को खाद और उर्वरक देना चाहिए इससे उनकी वृद्धि तेजी से होने लगती हैं।

आम के फूल व फलन को झड़ने से रोकने के लिए इन उपायों का इस्तेमाल करें [Remedies to stop the fall of mango blossom flowers & raw fruits]

आम के फलों का झड़ना कई सारे किसानों के लिए बहुत सारी परेशानियां खड़ी कर देता है। सबसे पहले जान लेते हैं ऐसा क्यों होता है ऐसा अधिक गर्मी और तेज गर्म हवाओं के चलने के कारण होता है। 

ऐसे में आप यह सावधानी रखें कि आम के पेड़ों को सीधी गर्म हवा से बचाया जा सके। सबसे ज्यादा आम के पेड़ों के फलों का झड़न मई महीने में होता है। इस समय ज्यादा फलों के गिरने के कारण बागवानों और किसानों को सबसे ज्यादा हानि होती हैं। 

इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए आप नियमित रूप से सिंचाई कर सकते हैं। नियमित रूप से सिंचाई करने से आम के पौधों को समय-समय पर पानी की खुराक मिलती रहती हैं इससे फल झड़ने की समस्या को कुछ हद तक रोका जा सकता है। 

आम के फलों के झड़ने का दूसरा कारण यह भी होता है कि आम के पौधों को सही रूप में पोषक तत्व नही मिले हो। इसके लिए आप समय-समय पर जरूरतमंद पोषक तत्व की खुराक पौधों में डालें। 

इसके अलावा आप इन हारमोंस जैसे कि ए एन ए 242 btd5 जी आदि का छिड़काव करके फलों के झाड़न को रोक सकते हैं। आम के पौधों को समय समय पर खाद और उर्वरक केकरा देते रहें इससे पौधा अच्छे से विकसित होता है और अन्य बीमारियों से सुरक्षित भी रहता है।

आम के पौधों में लगने वाले रोगों से इस प्रकार बचाव करें [How to prevent and cure diseases in mango plants]

जिस प्रकार आम हमें खाने में स्वादिष्ट लगते हैं उसी प्रकार कीड़ों मकोड़ों को भी बहुत ज्यादा पसंद आते हैं। ऐसे में इन कीड़ों मकोड़ों की वजह से कई सारी बीमारियां आम के पेड़ों को लग जाती हैं और पूरी फसल नष्ट हो जाती है। 

आम के पेड़ों में सबसे ज्यादा लगने वाला रोग दहिया रोग होता है इससे बचाव के लिए आप घुलनशील गंधक को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव अवश्य करें। इससे आम के पेड़ों में लगने वाला दहिया रोग मात्र 1 से 2 सप्ताह में पूर्ण रूप से नष्ट हो जाता है। 

इस घोल का छिड़काव आप प्रति सप्ताह दो से तीन बार अवश्य करें। छिड़कावकरते समय यह ध्यान अवसय रखे की ज्यादा मात्रा में घोल को आम के पेड़ों को ना दिया जाए वरना वो मुरझाकर नष्टभी हो सकते है। 

इसके अलावा दूसरा जो रोग आम के पेड़ में लगता है वह होता है कोयलिया रोग। से बचाव के लिए आप el-200 पीपी और 900 मिलीलीटर की मात्रा में घोल बनाकर सप्ताह में तीन से चार बार छिड़काव करें। 

इसका छिड़काव आप 20 20 दिन के अंतराल में जरूर करें और इसका ज्यादा छिड़काव करने से बचें। उपरोक्त उपायों से आप आम के फूल व फलन को गिरने से रोकने में काफी हद तक कामयाब हो सकते हैं ।

आम के बागों से अत्यधिक लाभ लेने के लिए फूल (मंजर ) प्रबंधन अत्यावश्यक, जाने क्या करना है एवं क्या नही करना है ?

आम के बागों से अत्यधिक लाभ लेने के लिए फूल (मंजर ) प्रबंधन अत्यावश्यक, जाने क्या करना है एवं क्या नही करना है ?

उत्तर भारत खासकर बिहार एवम् उत्तर प्रदेश में आम में मंजर, फरवरी के द्वितीय सप्ताह में आना प्रारम्भ कर देता है, यह आम की विभिन्न प्रजातियों तथा उस समय के तापक्रम द्वारा निर्धारित होता है। आम (मैंगीफेरा इंडिका) भारत में सबसे महत्वपूर्ण उष्णकटिबंधीय फल है। भारतवर्ष में आम उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश एवं बिहार में प्रमुखता से इसकी खेती होती है। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के वर्ष 2020-21 के संख्यिकी के अनुसार भारतवर्ष में 2316.81 हजार हेक्टेयर में आम की खेती होती है, जिससे 20385.99 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है। आम की राष्ट्रीय उत्पादकता 8.80 टन प्रति हेक्टेयर है। बिहार में 160.24 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में इसकी खेती होती है जिससे 1549.97 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है। बिहार में आम की उत्पादकता 9.67 टन प्रति हे. है जो राष्ट्रीय उत्पादकता से थोड़ी ज्यादा है।

आम की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि मंजर ने टिकोला लगने के बाद बाग का वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन कैसे किया जाय जानना आवश्यक है ? आम में फूल आना एक महत्वपूर्ण चरण है,क्योंकि यह सीधे फल की पैदावार को प्रभावित करता है । आम में फूल आना विविधता और पर्यावरणीय परिस्थितियों पर अत्यधिक निर्भर है। इस प्रकार, आम के फूल आने की अवस्था के दौरान अपनाई गई उचित प्रबंधन रणनीतियाँ फल उत्पादन को सीधे प्रभावित करती हैं।

आम के फूल का आना

आम के पेड़ आमतौर पर 5-8 वर्षों के विकास के बाद परिपक्व होने पर फूलना शुरू करते हैं , इसके पहले आए फूलों को तोड़ देना चाहिए । उत्तर भारत में आम पर फूल आने का मौसम आम तौर पर मध्य फरवरी से शुरू होता है। आम के फूल की शुरुआत के लिए तेज धूप के साथ दिन के समय 20-25 डिग्री सेल्सियस और रात के दौरान 10-15 डिग्री सेल्सियस की आवश्यकता होती है। हालाँकि, फूल लगने के समय के आधार पर, फल का विकास मई- जून तक शुरू होता है। फूल आने की अवधि के दौरान उच्च आर्द्रता, पाला या बारिश फूलों के निर्माण को प्रभावित करती है। फूल आने के दौरान बादल वाला मौसम आम के हॉपर और पाउडरी मिल्डीव एवं एंथरेक्नोज बीमारियों के फैलने में सहायक होता है, जिससे आम की वृद्धि और फूल आने में बाधा आती है।

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आम में फूल आने से फल उत्पादन पर क्या प्रभाव पड़ता है?

आम के फूल छोटे, पीले या गुलाबी लाल रंग के आम की प्रजातियों के अनुसार , गुच्छों में गुच्छित होते हैं, जो शाखाओं से नीचे लटकते हैं। वे उभयलिंगी फूल होते हैं लेकिन परागणकों द्वारा क्रॉस-परागण अधिकतम फल सेट में योगदान देता है। आम परागणकों में मधुमक्खियाँ, ततैया, पतंगे, तितलियाँ, मक्खियाँ, भृंग और चींटियाँ शामिल हैं। उत्पादित फूलों की संख्या और फूल आने की अवस्था की अवधि सीधे फलों की उपज को प्रभावित करती है। हालाँकि, फूल आना कई कारकों से प्रभावित होता है जैसे तापमान, आर्द्रता, सूरज की रोशनी, कीट और बीमारी का प्रकोप और पानी और पोषक तत्वों की उपलब्धता। ये कारक फूल आने के समय और तीव्रता को प्रभावित करते हैं। यदि फूल आने की अवस्था के दौरान उपरोक्त कारक इष्टतम नहीं हैं, तो इसके परिणामस्वरूप कम या छोटे फल लगेंगे। उत्पादित सभी फूलों पर फल नहीं लगेंगे। फल के पूरी तरह से सेट होने और विकसित होने के लिए उचित परागण आवश्यक है। पर्याप्त परागण के बाद भी, मौसम की स्थिति और कीट संक्रमण जैसे कई कारकों के कारण फूलों और फलों के बड़े पैमाने पर गिरने के कारण केवल कुछ अनुपात में ही फूल बनते हैं। इससे अंततः फलों की उपज और गुणवत्ता प्रभावित होती है। फूल आने का समय, अवधि और तीव्रता आम के पेड़ों में फल उत्पादन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है।

आम के फूलों का प्रबंधन

1. कर्षण क्रियाएं

फल की तुड़ाई के बाद आम के पेड़ों की ठीक से कटाई - छंटाई करने से अच्छे एवं स्वस्थ फूल आते हैं। कटाई - छंटाई की कमी से आम की छतरी (Canopy) घनी हो जाती है, जिससे प्रकाश पेड़ के आंतरिक भागों में प्रवेश नहीं कर पाता है और इस प्रकार फूल और उपज कम हो जाती है। टहनियों के शीर्षों की छंटाई करने से फूल आने शुरू होते हैं। छंटाई का सबसे अच्छा समय फल तुडाई के बाद होता है, आमतौर पर जून से अगस्त के दौरान। टिप प्रूनिंग, जो अंतिम इंटरनोड से 10 सेमी ऊपर की जाती है, फूल आने में सुधार करती है। गर्डलिंग आम में फलों की कलियों के निर्माण को प्रेरित करने के लिए उपयोग की जाने वाली एक विधि है। इसमें आम के पेड़ के तने से छाल की पट्टी को हटाना शामिल है। यह फ्लोएम के माध्यम से मेटाबोलाइट्स के नीचे की ओर स्थानांतरण को अवरुद्ध करके करधनी के ऊपर के हिस्सों में पत्तेदार कार्बोहाइड्रेट और पौधों के हार्मोन को बढ़ाकर फूल, फल सेट और फल के आकार को बढ़ाता है। पुष्पक्रम निकलने के समय घेरा बनाने से फलों का जमाव बढ़ जाता है। गर्डलिंग की गहराई का ध्यान रखना चाहिए। अत्यधिक घेरेबंदी की गहराई पेड़ को नुकसान पहुंचा सकती है। यह कार्य विशेषज्ञ की देखरेख या ट्रेनिंग के बाद ही करना चाहिए।

2. पादप वृद्धि नियामक (पीजीआर)

पादप वृद्धि नियामक (पीजीआर) का उपयोग पौधों की वृद्धि और विकास को नियंत्रित करने वाली शारीरिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करके फूलों को नियंत्रित करने और पैदावार बढ़ाने के लिए किया जाता है।एनएए फूल आने, कलियों के झड़ने और फलों को पकने से रोकने में भी मदद करते हैं। वे फलों का आकार बढ़ाने, फलों की गुणवत्ता और उपज बढ़ाने और सुधारने में मदद करते हैं। प्लेनोफिक्स @ 1 मी.ली. दवा प्रति 3 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव फूल के निकलने से ठीक पूर्व एवं दूसरा छिड़काव फल के मटर के बराबर होने पर करना चाहिए ,यह छिड़काव टिकोलो (आम के छोटे फल) को गिरने से रोकने के लिए आवश्यक है।लेकिन यहा यह बता देना आवश्यक है की आम के पेड़ के ऊपर शुरुआत मे जीतने फल लगते है उसका मात्र 5 प्रतिशत से कम फल ही अंततः पेड़ पर रहता है , यह पेड़ की आंतरिक शक्ति द्वारा निर्धारित होता है । कहने का तात्पर्य यह है की फलों का झड़ना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है इसे लेकर बहुत घबराने की आवश्यकता नहीं है । पौधों की वृद्धि और विकास पर नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए पीजीआर का सावधानीपूर्वक प्रबंधन किया जाना चाहिए, जैसे अत्यधिक शाखाएं, फलों का आकार कम होना, या फूल आने में देरी। उपयोग से पहले खुराक और आवेदन के समय की जांच करें।

3. पोषक तत्व प्रबंधन

आम के पेड़ों में फूल आने के लिए पोषक तत्व प्रबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नाइट्रोजन पौधों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है। हालाँकि, अत्यधिक नाइट्रोजन फूल आने के बजाय वानस्पतिक विकास को बढ़ावा देकर आम के फूल आने में देरी करती है। इससे फास्फोरस(पी) और पोटाश (के) जैसे अन्य पोषक तत्वों में भी असंतुलन हो सकता है जो फूल आने के लिए महत्वपूर्ण हैं। नाइट्रोजन के अधिक उपयोग से वानस्पतिक वृद्धि के कारण कीट संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। फूलों के प्रबंधन के लिए नत्रजन (एन) की इष्टतम मात्रा का उपयोग किया जाना चाहिए। फास्फोरस आम के पेड़ों में फूल लगने और फल लगने के लिए आवश्यक है। फूल आने को बढ़ावा देने के लिए फूल आने से पहले की अवस्था में फॉस्फोरस उर्वरक का प्रयोग करें। पर्याप्त पोटेशियम का स्तर आम के पेड़ों में फूलों को बढ़ा सकता है और फूलों और फलों की संख्या में वृद्धि करता है। पोटेशियम फल तक पोषक तत्वों और पानी के परिवहन में मदद करता है, जो इसके विकास और आकार के लिए आवश्यक है। यह पौधों में नमी के तनाव, गर्मी, पाले और बीमारी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी मदद करता है। सूक्ष्म पोषक तत्वों के प्रयोग से फूल आने, फलों की गुणवत्ता में सुधार और फलों का गिरना नियंत्रित करके बेहतर परिणाम मिलते हैं।

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4. कीट एवं रोग प्रबंधन

फूल और फल बनने के दौरान, कीट और बीमारी के संक्रमण की संभावना अधिक होती है, जिससे फूल और समय से पहले फल झड़ने का खतरा होता है। मैंगो हॉपर, फ्लावर गॉल मिज, मीली बग और लीफ वेबर आम के फूलों पर हमला करने वाले प्रमुख कीट हैं। मैंगो पाउडरी मिल्ड्यू, मैंगो मैलफॉर्मेशन और एन्थ्रेक्नोज ऐसे रोग हैं जो आम के फूलों को प्रभावित करते हैं जिससे फलों का विकास कम हो जाता है। फलों की पैदावार बढ़ाने के लिए आम के फूलों में कीटों और बीमारियों के लक्षण और प्रबंधन की जाँच करें - आम के फूलों में रोग और कीट प्रबंधन करना चाहिए।

विगत 4 – 5 वर्ष से बिहार में मीली बग (गुजिया) की समस्या साल दर साल बढ़ते जा रही है। इस कीट के प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि दिसम्बर- जनवरी में बाग के आस पास सफाई करके मिट्टी में क्लोरपायरीफास 1.5 डी. धूल @ 250 ग्राम प्रति पेड का बुरकाव कर देना चाहिए तथा मीली बग (गुजिया)  कीट पेड़ पर न चढ सकें इसके लिए एल्काथीन की 45 सेमी की पट्टी आम के मुख्य तने के चारों तरफ सुतली से बांध देना चाहिए। ऐसा करने से यह कीट पेड़ पर नही चढ़ सकेगा । यदि आप ने पूर्व में ऐसा नही किया है एवं गुजिया कीट पेड पर चढ गया हो तो ऐसी अवस्था में डाएमेथोएट 30 ई.सी. या क्विनाल्फोस 25 ई.सी.@ 1.5 मीली दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। जिन आम के बागों का प्रबंधन ठीक से नही होता है वहां पर हापर या भुनगा कीट बहुत सख्या में हो जाते है अतः आवश्यक है कि सूर्य का प्रकाश बाग में जमीन तक पहुचे जहां पर बाग घना होता है वहां भी इन कीटों की सख्या ज्यादा होती है।

पेड़ पर जब मंजर आते है तो ये मंजर इन कीटों के लिए बहुत ही अच्छे खाद्य पदार्थ होते है,जिनकी वजह से इन कीटों की संख्या में भारी वृद्धि हो जाती है।इन कीटों की उपस्थिति का दूसरी पहचान यह है कि जब हम बाग के पास जाते है तो झुंड के झुंड  कीड़े पास आते है। यदि इन कीटों को प्रबंन्धित न किया जाय तो ये मंजर से रस चूस लेते है तथा मंजर झड़ जाता है । जब प्रति बौर 10-12 भुनगा दिखाई दे तब हमें इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल.@1मीली दवा प्रति 2 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करना चाहिए । यह छिड़काव फूल खिलने से पूर्व करना चाहिए अन्यथा बाग में आने वाले मधुमक्खी के किड़े प्रभावित होते है जिससे परागण कम होता है तथा उपज प्रभावित होती है ।

पाउडरी मिल्डयू/ खर्रा रोग के प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि मंजर आने के पूर्व घुलनशील गंधक @ 2 ग्राम / लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करना चाहिए। जब पूरी तरह से फल लग जाय तब इस रोग के प्रबंधन के लिए हेक्साकोनाजोल @ 1 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए। जब तापक्रम 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाता है तब इस रोग की उग्रता में कमी अपने आप आने लगती है।

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गुम्मा व्याधि से ग्रस्त बौर को काट कर हटा देना चाहिए। बाग में यदि तना छेदक कीट या पत्ती काटने वाले धुन की समस्या हो तो क्विनालफोस 25 ई.सी. @ 2 मीली दवा / लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करना चाहिए। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है की फूल खिलने के ठीक पहले से लेकर जब फूल खिले हो उस अवस्था मे कभी भी किसी भी रसायन, खासकर कीटनाशकों का छिडकाव नहीं करना चाहिए, अन्यथा परागण बुरी तरह प्रभावित होता है एवं फूल के कोमल हिस्से घावग्रस्त होने की संभावना रहती है । 

5. परागण

आम के फूल में एक ही फूल में नर और मादा दोनों प्रजनन अंग होते हैं। हालाँकि, आम के फूल अपेक्षाकृत छोटे होते हैं और बड़ी मात्रा में पराग का उत्पादन नहीं करते हैं। इसलिए, फूलों के बीच पराग स्थानांतरित करने के लिए वे मक्खियों, ततैया और अन्य कीड़ों जैसे परागणकों पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं। परागण के बिना, आम के फूल फल नहीं दे सकते हैं, या फल छोटा या बेडौल हो सकता है। पर-परागण से आम की पैदावार बढ़ती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पूर्ण ब्लूम(पूर्ण रूप से जब फूल खिले होते है) चरण के दौरान कीटनाशकों और कवकनाशी का छिड़काव नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इस समय कीटों द्वारा परागण प्रभावित होगा जिससे उपज कम हो जाएगी। आम के बाग से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आम के बाग में मधुमक्खी की कालोनी बक्से रखना अच्छा रहेगा,इससे परागण अच्छा होता है तथा फल अधिक मात्रा में लगता है।

6. मौसम की स्थिति

फूल आने के दौरान अनुकूलतम मौसम की स्थिति से सफल फल लगने की दर और पैदावार में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए, अत्यधिक हवा की गति के कारण फूल और फल बड़े पैमाने पर गिर जाते हैं। इस प्रकार, विंडब्रेक या शेल्टरबेल्ट लगाकर आम के बागों को हवा से सुरक्षा प्रदान करना आवश्यक है।

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7. जल प्रबंधन

आम के पेड़ों को विशेष रूप से बढ़ते मौसम के दौरान पर्याप्त मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। अपर्याप्त या अत्यधिक पानी देने से फल की उपज और गुणवत्ता कम हो सकती है। उचित जल प्रबंधन बीमारियों और कीटों को रोकने में भी मदद करता है, जो नम वातावरण में पनपते हैं। गर्म और शुष्क जलवायु में, सिंचाई आर्द्रता के स्तर को बढ़ाने और तापमान में उतार-चढ़ाव को कम करने में मदद कर सकती है, जिससे आम की वृद्धि के लिए अधिक अनुकूल वातावरण मिलता है। अत्यधिक सिंचाई से मिट्टी का तापमान कम हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप पौधों की वृद्धि और विकास कम हो जाता है। दूसरी ओर, अपर्याप्त पानी देने से मिट्टी का तापमान बढ़ सकता है, पौधों की जड़ों को नुकसान पहुँच सकता है और पैदावार कम हो सकती है। इस प्रकार, स्वस्थ पौधों की वृद्धि और फल उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी जल प्रबंधन आवश्यक है। फूल निकलने के 2 से 3 महीने पहले से लेकर फल के मटर के बराबर होने के मध्य सिंचाई नही करना चाहिए ।कुछ बागवान आम में फूल लगने एवं खिलने के समय सिंचाई करते है इससे फूल झड़ जाते है । इसलिए सलाह दी जाती है सिंचाई तब तक न करें जब तक फल मटर के बराबर न हो जाय।

सारांश

अधिक पैदावार के लिए आम के फूलों के प्रबंधन में पौधों की वृद्धि को अनुकूलित करने, कीटों और बीमारियों का प्रबंधन करने और फूलों के विकास और परागण के लिए इष्टतम पर्यावरणीय परिस्थितियों को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से रणनीतियों का संयोजन शामिल है। इन प्रबंधन प्रथाओं का पालन करने से फूलों और फलों के उत्पादन में वृद्धि हो सकती है, जिससे उच्च पैदावार और फलों की गुणवत्ता में सुधार होगा।


Dr AK Singh
डॉ एसके सिंह प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी) एवं विभागाध्यक्ष,
पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी,
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना,डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर,बिहार
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